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प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति के आविष्कारक एवं विकास में सहयोगी

प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति भारत की अपनी प्राचीन चिकित्सा पद्धति है। प्राचीन काल में संसार के अन्य सभी देश भी इस प्राचीन चिकित्सा पद्धति से परिचित थे। प्राकृतिक चिकित्सा स्वस्थ व आनन्दमय जीवन जीने की एक कला है और प्राकृतिक चिकित्सा एक ड्रगलैस प्रणाली पूर्णतः स्थापित दर्शन पर आधारित चिकित्सा विज्ञान है। प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में आसनों का महत्वपूर्ण स्थान है। आसनों द्वारा शरीर स्वास्थ्य सुधार का प्रचलन प्राचीन काल से चला आ रहा है। भारत के अनेक महान ऋषियों ने मानव जाति की शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक तरक्की के लिए हजारों वर्ष परिश्रम कर अपने अनुभवों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है कि जब से हमने प्रकृति को देखा है, तब से उतनी ही पुरानी प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली है। इस प्राचीन चिकित्सा पद्धति में जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी, प्रकाश तथा प्राकृतिक वातावरण महत्वपूर्ण हैं। प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति के आविष्कारक एवं विकास कार्य में सहयोगी- विनसेंज प्रिस्निज, जोहान्स स्क्राथ, फादर सेबस्टियन नीप, आर्नल्ड रिक्ली, लूई कूने, हेनरिच लेमैन, एडोल्फ जुस्ट, बेनिडिक्ट लुस्ट, स्टैनली लीफ, बरनर मैकफेडन, जे0एच0 टिल्डेन, मिल्टन पावेल आदि एवं भारत में प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति के जनक तथा विकास कार्य के सहयोगी राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी ने अपने रचनात्मक कार्यक्रमों में प्राकृतिक चिकित्सा को शामिल किया। गांधीजी के प्रभाव के कारण, कई राष्ट्रीय नेता इस अल्पसंख्यक स्वास्थ्य आंदोलन में शामिल हो गए। पूर्व प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई, पं0 जवाहर लाल नेहरू, कृष्ण स्वरूप श्रोत्रीय, सन्त विनोबा भावे, श्री मोरारजी भाई देसाई, डा0 लक्ष्मी नारायण चैधरी, डा महावीर प्रसाद पोद्दार, डा0 जानकी शरण वर्मा, डा0 कुलरंजन मुखर्जी, डा0 शरण प्रसाद, डा0 गंगा प्रसाद गौड ‘नाहर’, महात्मा जगदीश्वरानन्द जी, डा0 बिटठल दास मोदी, डा0 श्री मन्नारायण अग्रवाल, डा0 एस स्वामी नाथन, डा0 बी0 टी0 चिदानन्द मूर्ति राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा संस्थान (भारत सरकार) स्वास्थ्य मंत्रालय आदि रहे हैं। भारतीय प्राकृतिक चिकित्सा आंदोलन में आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और गुजरात मुख्य रूप से अग्रणी रहे हैं। विभिन्न राज्यों में प्राकृतिक चिकित्सा के पुनरुद्धार में नींव का काम करने वाले डा जानकी शरण वर्मा, श्री शरण प्रसाद, डॉ खुशी राम दिलखुश, डॉ एसजे सिंह, डॉ हीरालाल, डॉ विट्ठल दास मोदी हैं। डा0 कुलरंजन मुखर्जी, डा सुखराम दास, डॉ बी वेंकट राव, डॉ बी विजया लक्ष्मी, डॉ गंगा प्रसाद गौड़ नाहर, श्री धरम चंदा, डा सुखबीर सिंह रावत, आचार्य लालकृष्ण लक्ष्मण शर्मा आदि आज की स्थिति के अनुसार, प्राकृतिक चिकित्सा मान्यता प्राप्त है और एक स्वतंत्र प्रणाली के रूप में स्वीकार है। वर्तमान में भारत सरकार एवं राज्य सरकारें प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति को अपना विशेष सहयोग प्रदान कर प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति का विकास कर रही हैं। भारत सरकार स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, (अनुसंधान शाखा) निर्माण भवन नई दिल्ली ने दिनांकः 25 नवम्बर 2003 में अपने आदेश संख्या- आर 14015/25/96-यू0 एण्ड एच (आर) (Pt) में स्पष्ट किया है कि भारत सरकार ने छः चिकित्सा पद्धतियां एलौपैथी, आयुर्वेद, यूनानी, होम्योपैथी, नेचुरोपैथिक एवं योगा, सिद्ध को मान्यता की श्रेणी में रखा है। उक्त मान्यता प्राप्त चिकित्सा पद्धतियों (एलौपैथी, आयुर्वेद, यूनानी, होम्योपैथी, नेचुरोपैथिक एवं योगा) के चिकित्सा व्यवसायी ही अपने नाम के साथ डाक्टर शब्द का प्रयोग करेंगे।।